कब्जेधारी पत्रकार गंगा पाठक का सर्वोच्च न्यायालय ने वांरट किया रद्द...

आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने वाले गंगा पाठक की सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज हुई तो पाठक परिवार समेत अन्य आरोपियों को तुंरत भेजा जा सकता है,जेल
अनिमेष मिश्रा
जबलपुर दैनिक द लुक। मीडिया रिर्पोट्स के अनुसार जबलपुर के पत्रकार गंगा पाठक और उनकी पत्नी ममता पाठक समेत कुल 10 अन्य लोगों पर आदिवासी परिवारों की जमीन धोखाधड़ी से अपने नाम कर लेने का आरोप है। आरोप है कि आदिवासियों के जाति प्रमाण पत्र में गड़बड़ी कर उन्हें ओबीसी अथवा राजपूत दिखाकर जमीन का रजिस्ट्रेशन कराया गया। इस जमीन पर कुल लगभग 5 एकड़ (4.5+ एकड़) कब्जा किया गया था।
- एफआईआर एवं कानूनी धाराएँ
मामले में धोखाधड़ी, साजिश और एससी/एसटी अधिनियम (SC/ST एक्ट) के तहत आरोपी बनाए गए हैं। पुलिस ने फर्जी रजिस्ट्रेशन और दस्तावेज तैयार करने में दलाल, पटवारी, वेंडर और गवाहों को भी नामजद किया है। - प्रशासनिक (रेवेन्यू) कार्रवाई
एसडीएम ने फर्जी रजिस्ट्रेशन को शून्य घोषित कर आदिवासी परिवारों के नाम पर रिकॉर्ड बहाल किए हैं। इसमें उप-पंजीयक और पटवारी की भूमिका भी संदिग्ध बताई गई हैं...
- सुप्रीम कोर्ट में याचिका --
- हाल ही में यह अग्रिम जमानत याचिका मध्यप्रदेश हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद, गंगा पाठक और उनकी पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में राहत की गुहार लगाई है,वर्तमान में हाईकोर्ट की अनसुनी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फरारा पाठक परिवार की गिरफ्तारी पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी है, जानकारों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने इस विशेष याचिका पर फिलहाल सुनवाई पूरी करने की प्रक्रिया तेज कर दी है।
घटनाक्रम का सारांश
तारीख या अवधि |
घटनाक्रम |
नवम्बर 2022 |
आम आदिवासी परिवारों के ठेकेदारी दस्तावेज बनाकर फर्जी रजिस्ट्रेशन कराया गया। |
मार्च 2025 |
तिलवारा थाना क्षेत्र में FIR दर्ज; एससी/एसटी एक्ट व धोखाधड़ी केस दर्ज। |
जून 2025 |
स्टेट लेवल रेवेन्यू टीम ने रजिस्ट्री शून्य की और रिकार्ड में सुधार किया। |
जुलाई 2025 |
हाई कोर्ट से पूर्व जमानत याचिका खारिज; सर्वोच्च अदालत में याचिका दाखिल; खर्चीली कार्रवाई जारी। |
संदर्भ और अगले कदम
- जमीनी सत्यापन: प्रशासन द्वारा फर्जी दस्तावेजों की जांच के बाद 3–4 प्रकरणों में रेवेन्यू रिकॉर्ड बहाल किए गए।
- पुलिस छापेमारी: गंगा पाठक के घर–दफ्तर पर पुलिस दबिश दी, फिलहाल गिरफ्तारी नहीं हुई, आरोपी फरार बताए जा रहे हैं।
- उच्च न्यायालय की भूमिका: HC से जमानत याचिका खारिज होने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, जहां सुनवाई प्रक्रिया चल रही है।
नियम क्या कहते है --
- आदिवासियों की जमीन का दर्जा बदलना या बेचना कानूनी अपराध है — सरकार की अनुमति जरूरी होती है।
- जमीन का फर्जी मालिकाना हक साबित होने पर न केवल रेजिस्ट्रेशन शून्य होगा, बल्कि आरोप साबित होने पर आरोपियों पर गंभीर अपराध दर्ज होंगे।
सुप्रीम कोर्ट सुनवाई – बुधवार, 30 अप्रैल 2025
- अग्रिम जमानत याचिका खारिज
जबलपुर के विशेष न्यायाधीश (SC/ST कोर्ट) ने अपराध संख्या 120/2025 (IPC की धाराएँ 419, 420, 467, 468, 471 और SC/ST अधिनियम की धाराएँ 3(1)(f), 3(1)(g), 3(2)(v)) के तहत आरोपी पत्रकार गंगा पाठक और उनकी पत्नी ममता की anticipatory bail याचिका खारिज की थी। इससे उच्च न्यायालय में अपील की गई थी, लेकिन उच्च न्यायालय से भी यह याचिका अस्वीकार होने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। - सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करने से पहले संबंधित सभी रिकॉर्ड (जैसे FIR, कोर्ट के आदेश, कस्टडी रिपोर्ट आदि) विदित कराने के निर्देश दिए। कोर्ट ने दोनों पक्षों को नोटिस जारी कर अगली सुनवाई की तारीख निर्धारित की है। शीर्ष न्यायालय ने न्यायिक प्रक्रिया सख्तता से आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया, लेकिन किसी भी समय जमानत देने या न देने पर स्पष्ट निर्णय अभी नहीं आया है। - मामले की संवेदनशीलता
सुप्रीम कोर्ट मामले को ध्यानपूर्वक देख रही है क्योंकि इसमें महिलाओं सहित आदिवासी समुदाय के साथ धोखाधड़ी और SC/ST अधिनियम के अंतर्गत दमनकारी अपराध शामिल हैं। दोनों पक्षों से विस्तारपूर्वक तर्क सुना जाएँगे, जिसके बाद ही कोर्ट अंतिम निर्णय सुनाएगी।
निर्णय की संभावना और आगे की प्रक्रिया
- अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख निर्धारित की है; तब तक दोनों पक्षों को लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। - जमानत मिलने की स्थिति
उच्च न्यायालय और विशेष अदालत द्वारा दो बार अग्रिम जमानत अस्वीकार करने के बाद, अब अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है जो कि विस्तार से न्यायिक जाँच, दस्तावेज और आरोपों की गंभीरता को देखते हुए लिया जाएगा। अगर सुप्रीम कोर्ट जमानत दे देती है, तो गंगा पाठक और उनकी पत्नी को सुनवाई तक गिरफ्तारी से राहत मिली रहेगी परंतु यदि याचिका फिर भी खारिज होती है, तो उन्हें तुरंत गिरफ्तारी का सामना करना पड़ सकता है और मूल मामले की सुनवाई त्वरित रूप से शुरू हो जाएगी।